खड़ी ढलानों, बर्फीली हवाओं से कठिन रास्तों तक... भारतीय सेना की त्रिशक्ति वॉरियर्स कोर ने 17,000 फीट की ऊंचाई पर पूरा किया ट्रैक मार्च

Sep 17, 2025 - 11:54
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खड़ी ढलानों, बर्फीली हवाओं से कठिन रास्तों तक... भारतीय सेना की त्रिशक्ति वॉरियर्स कोर ने 17,000 फीट की ऊंचाई पर पूरा किया ट्रैक मार्च

भारतीय सेना के सिलीगुड़ी स्थित त्रिशक्ति वॉरियर्स कोर के जवानों ने सिक्किम के चुनौतीपूर्ण इलाकों में अपने ट्रैक मार्च को सफलतापूर्वक पूरा किया. त्रिशक्ति वॉरियर्स कोर के जवानों का यह छह दिवसीय ट्रैक मार्च 9 सितंबर, 2025 से शुरू हुआ था, जो सोमवार (15 सितंबर, 2025) को समाप्त हो गया. इस दौरान भारतीय सेना के जवानों ने सिक्किम के दुर्गम इलाकों में 17 हजार फीट की ऊंचाई पर अपने पूरे युद्ध भार के साथ एक ट्रैक मार्च को सफलतापूर्वक पूरा किया.

त्रिशक्ति वॉरियर्स कोर के जवानों का यह ट्रैक छह दिनों औ रातों तक चला. इस दौरान त्रिशक्ति कोर के जवानों ने खड़ी ढलानों, बर्फीली हवाओं और दुर्गम रास्तों को भी सफलतापूर्वक पार किया. इस ट्रैक मार्च से जवानों की शारीरिक सहनशक्ति, मानसिक लचीलापन और सामूहिक भावना का परीक्षण हुआ.


क्या थीं भारतीय सेना के ट्रैक मार्च की विशेषताएं

भारतीय सेना के त्रिशक्ति वॉरियर्स कोर के जवानों ने छह दिन और रातों तक 17 हजार फीट की ऊंचाई पर कठिन चुनौतियों का सामना करते हुए अपने ट्रैक मार्च को पूरा किया. इस ट्रैक मार्च की विशेषताओं की बात करें, जिसमें-

  • पूर्ण युद्ध भार: इस ट्रैक मार्च के दौरान भारतीय सेना के त्रिशक्ति वॉरियर्स कोर के प्रत्येक सैनिक ने अपने पूर्ण परिचालन भार के साथ इसमें भाग लिया. जवानों के पूर्ण युद्ध भार मे हथियार, उपकरण और अस्तित्व के लिए आवश्यक सामग्री शामिल थी, जो उच्च ऊंचाई वाले और चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों में युद्ध की स्थितियों की नकल करती थी.
  • चुनौतीपूर्ण परिस्थितियां: मार्च के दौरान सैनिकों को खड़ी ढलानों, बर्फीली हवाओं और दुर्गम रास्तों का सामना करना पड़ा, जो उनकी सहनशक्ति और लचीलेपन का परीक्षण करता था.
  • मानवीय धैर्य और अनुकूलनशीलता: इसके अलावा, सेना आधुनिक प्रौद्योगिकी, ड्रोन और स्मार्ट लॉजिस्टिक्स को भी अपने संचालन में एकीकृत करना जारी रखती है. ऐसे अभ्यास अपरिहार्य हैं, जो इस बात को पूर्ण रूप से सुनिश्चित करते हैं कि सेना के जवान ऐसे कठिन परिस्थितियों में भी अपने नियत लक्ष्य को पूरा करने के लिए तैयार हैं, जहां प्रौद्योगिकी सीमित हो सकती है और मानव सहनशक्ति और अनुकूलनशीलता की प्रधानता की पुष्टि होती है.

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