'वन नेशन वन इलेक्शन' पर उद्धव ठाकरे गुट का स्टैंड साफ, सरकार को भेजे ये आठ सुझाव

May 19, 2025 - 17:51
 0
'वन नेशन वन इलेक्शन' पर उद्धव ठाकरे गुट का स्टैंड साफ, सरकार को भेजे ये आठ सुझाव

Ambadas Danve On One Nation One Election: 'वन नेशन वन इलेक्शन' को लेकर महाराष्ट्र में एक बार फिर बहस छिड़ी है. प्रदेश में विपक्ष के नेता अंबादास दानवे ने आशंका जताते हुए कहा है कि 'वन नेशन वन इलेक्शन' से केंद्र में एक ही पार्टी की तानाशाही स्थापित हो सकती है. उन्होंने इस विधेयक पर आपत्तियां दर्ज कराते हुए संयुक्त समिति को इसे संशोधित करने के सुझाव दिए हैं.

उन्होंने कहा, ''इस विधेयक को लागू करने के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 83, 85, 174, 356, 75(3) और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में बड़े पैमाने पर संशोधन की आवश्यकता है. लेकिन, ये संवैधानिक सुधार देश की संघीय संरचना, क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व और लोकतांत्रिक मूल्यों पर गंभीर असर डाल सकते हैं.''

'लोकसभा चुनाव में कई केंद्रों पर सुविधाओं की कमी दिखी'

दानवे ने आगे कहा, ''लोकसभा चुनाव के समय कई मतदान केंद्रों पर प्राथमिक सुविधाओं की भारी कमी देखी गई थी. रात 2 बजे तक व्यवस्थाएं दुरुस्त नहीं थीं. वहीं महाराष्ट्र सरकार ने हाल ही में कोर्ट में यह कहा है कि जिला परिषद और महानगरपालिका चुनाव एक ही चरण में कराना संभव नहीं है. यह दर्शाता है कि विकसित राज्य भी 'वन नेशन वन इलेक्शन' को व्यावहारिक नहीं मानते.''

अंबादास दानवे ने क्या जताई उम्मीद?

शिवसेना (यूबीटी) नेता ने ये भी कहा, ''भारतीय लोकतंत्र विविधताओं से समृद्ध है, इसलिए 'एकरूपता' नहीं, बल्कि 'समरसता' बनाए रखना अधिक जरूरी है. दानवे ने उम्मीद जताई कि इस विधेयक पर दी गई आपत्तियों को प्रक्रिया में शामिल कर व्यापक और संघीय दृष्टिकोण से पुनर्विचार किया जाएगा.

विधेयक पर प्रस्तुत प्रमुख आपत्तियां एवं सुझाव इस प्रकार हैं:

1. संघीय ढांचे को खतरा 

भारत की शासन व्यवस्था संघीय ढांचे पर आधारित है. प्रत्येक राज्य की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक ज़रूरतों के अनुसार अलग चुनाव चक्र जरूरी है. एक साथ चुनाव कराने से स्थानीय मुद्दे राष्ट्रीय प्रचार में दब सकते हैं.

2. स्थानीय स्वायत्तता पर असर

ग्राम पंचायत, नगर परिषद और महानगरपालिका जैसी स्थानीय स्वराज्य संस्थाओं को अलग चुनावों के माध्यम से नागरिकों की आकांक्षाएं प्रकट करने का अवसर मिलता है. 'वन नेशन वन इलेक्शन' से इन संस्थाओं की स्वतंत्रता अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हो सकती है.

3. संकट में क्षेत्रीय पार्टियों का अस्तित्व 

DMK, TMC, BJD जैसी क्षेत्रीय पार्टियां स्थानीय मुद्दों पर केंद्रित होती हैं. एकसाथ चुनाव होने पर राष्ट्रीय दलों का वर्चस्व बढ़ेगा, जिससे प्रचार, फंडिंग और मीडिया का ध्यान उन्हीं पर केंद्रित रहेगा. इससे क्षेत्रीय दल कमजोर पड़ सकते हैं.

4. मतदाता भागीदारी में कमी की आशंका

बार-बार चुनावों से जनता को अपनी राय व्यक्त करने का अवसर मिलता है. लेकिन अगर एक ही बार में चुनाव हो जाएं, तो पांच वर्षों तक सरकार को कोई जवाबदेही न रहे और लोकतांत्रिक उत्तरदायित्व कम हो सकता है.

5. कानूनी और नीतिगत अस्पष्टता

अगर किसी विधानसभा में बहुमत न आए, या राष्ट्रपति शासन लगे, तो चुनाव कब और कैसे कराए जाएं – इस बारे में विधेयक में स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं हैं. इससे संविधान और व्यावहारिक स्थिति के बीच टकराव हो सकता है.

6. प्रारंभिक खर्च का भारी बोझ

EVMs की खरीद, प्रशिक्षण और सुरक्षा व्यवस्था जैसे मुद्दों पर तत्काल भारी खर्च आएगा. दीर्घकालिक बचत का दावा किया गया है, लेकिन तात्कालिक खर्च बहुत अधिक है.

7. चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और व्यावहारिक सीमाएं

चुनाव आयोग के लिए एक साथ लोकसभा और सभी राज्य विधानसभा चुनावों का संचालन करना तकनीकी, मानव संसाधन और लॉजिस्टिक्स के लिहाज से बेहद मुश्किल है. इससे पारदर्शिता और दक्षता पर सवाल खड़े हो सकते हैं.

8. स्थानीय प्रशासन और बुनियादी सुविधाओं पर दबाव

स्थानीय मतदान केंद्रों की कमी, सुरक्षा व्यवस्था की अपर्याप्तता और ग्रामीण क्षेत्रों में लॉजिस्टिक दिक्कतों से लोगों के मतदान अधिकार प्रभावित हो सकते हैं.

What's Your Reaction?

Like Like 0
Dislike Dislike 0
Love Love 0
Funny Funny 0
Angry Angry 0
Sad Sad 0
Wow Wow 0
Barwara Patrika Barwara Patrika is a Hindi newspaper published and circulated in Jaipur , Ajmer , Sikar, Kota and Sawaimadhopur . Barwara Patrika covers news and events all over from India as well as international news, it serves the Indian community by providing relevant information.