इंदिरा गांधी ने रामभद्राचार्य को दिया था आंखें ठीक कराने का ऑफर, जगद्गुरु ने क्यों ठुकराया?

पिछले कुछ दिनों से जगद्गुरु रामभद्राचार्य लगातार अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में हैं. पहले उन्होंने प्रेमानंद महाराज को संस्कृत बोलने की चुनौती दी, फिर डॉ. भीमराव अंबेडकर पर टिप्पणी की और अब मेरठ में एक कार्यक्रम के दौरान पश्चिमी यूपी को 'मिनी पाकिस्तान' बता दिया. उन्होंने कहा कि हालात इतने खराब हैं कि हिंदुओं को पलायन करना पड़ रहा है. उनके इस बयान पर राजनीतिक घमासान तेज हो गया है, हालांकि रामभद्राचार्य अपने कथन पर अडिग हैं.
दिव्यांग होने के बावजूद रामभद्राचार्य संस्कृत सहित 22 भाषाओं का ज्ञान रखते हैं. हाल ही में एक पॉडकास्ट में उन्होंने बताया था कि कई नेताओं ने उनकी आंखों का इलाज कराने की पेशकश की थी. उन्होंने 1974 की घटना याद करते हुए कहा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनसे कहा था कि सरकार उनकी आंखों का इलाज कराना चाहती है, लेकिन उन्होंने मना कर दिया और कहा कि संसार देखने योग्य नहीं, देखने योग्य केवल भगवान राम हैं.
इंदिरा गांधी ने जताई थी आंखों का इलाज कराने की इच्छा
रामभद्राचार्य ने बताया कि 1974 में आयोजित अखिल भारतीय संस्कृत प्रतियोगिताओं में उन्होंने पांचों में पहला स्थान पाया. पुरस्कार वितरण में मौजूद इंदिरा गांधी उनकी प्रतिभा से प्रभावित हुईं और उनकी आंखों का इलाज कराने की इच्छा जताई, लेकिन उन्होंने श्लोक सुनाकर कहा कि उनकी चाह केवल भगवान राम का दर्शन करने की है.
क्या है रामभद्राचार्य का वास्तविक नाम?
रामभद्राचार्य का जन्म 14 जनवरी 1950 को उत्तर प्रदेश के जौनपुर में हुआ था. उनका असली नाम गिरिधर मिश्रा था. यह नाम उनके दादा के चचेरे भाई ने रखा था, जो मीराबाई के भक्त थे. जब वे सिर्फ दो महीने के थे, तब उनकी आंखों में ट्रेकोमा हो गया. गांव में इलाज की सुविधा न होने के कारण उनकी आंखों की रोशनी हमेशा के लिए चली गई, लेकिन आंखों की रोशनी न होने के बावजूद उन्होंने अपने दादा से शिक्षा पाई और पांच साल की उम्र में पूरी भगवद्गीता याद कर ली.
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