Rajasthan King Of Marwar: सुहागरात के दिन पत्नी की सहेली से राजा ने बना लिया संबंध, जीवनभर राजा से रूठी रही रानी, जानें पूरी कहानी

Sep 11, 2025 - 11:49
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Rajasthan King Of Marwar: सुहागरात के दिन पत्नी की सहेली से राजा ने बना लिया संबंध, जीवनभर राजा से रूठी रही रानी, जानें पूरी कहानी

राजस्थान की धरती किलों, किस्सों और वीरता की गाथाओं से भरी हुई है. यही वह धरती है जहां से एक ओर रणभूमि में शेरशाह सूरी जैसा बादशाह मिला तो दूसरी ओर एक रानी ने अपने आत्मसम्मान के लिए जीवनभर अपने पति से दूरी बनाए रखी. यह कहानी है मारवाड़ के प्रतापी राजा राव मालदेव और उनकी पत्नी रानी उमादे (रूठी रानी) की है, जिसका जिक्र प्रेमचंद के ऐतिहासिक उपन्यास रूठी रानी में है.

मुगल, अफगान और राजपूतों के बीच जब सत्ता का संघर्ष तेज था, तब राव मालदेव ने न केवल मारवाड़ को संगठित किया बल्कि शेरशाह सूरी जैसे रणकुशल शासक को भी रणनीति से रोक दिया, लेकिन उनके निजी जीवन में एक ऐसा कलंक लगा, जिसने उनके वैवाहिक जीवन को कभी संपूर्ण नहीं होने दिया.

राव मालदेव एक प्रतापी शासक का उदय
1526 की पानीपत की लड़ाई के बाद बाबर ने दिल्ली में मुगलिया सल्तनत की नींव रखी. खानवा की लड़ाई में राणा सांगा के साथ लड़े राव गंगा सिंह राठौड़ के पुत्र राव मालदेव 1531 में केवल 20 वर्ष की आयु में मारवाड़ के शासक बने. उन्होंने कम समय में ही जालौर, नागौर, अजमेर, बीकानेर और मेड़ता को मारवाड़ में मिला लिया. राव मालदेव का विस्तार इतना व्यापक था कि वे राजपूतों के सबसे ताकतवर शासकों में गिने जाने लगे. इतिहासकार जेम्स टॉड और वी.एस. भार्गव लिखते हैं कि उनकी रणनीति इतनी सटीक थी कि शेरशाह सूरी जैसे योद्धा को भी उनके सामने अपने कदम पीछे खींचने पड़े.

रूठी रानी उमादे की कहानी
राव मालदेव का विवाह जैसलमेर के शासक लूड़करण की पुत्री रानी उमादे (उमादेवी भटियाड़ी) से हुआ. यह विवाह एक राजनीतिक संधि भी था, जिसने दोनों राज्यों के संबंध मजबूत किए, लेकिन विवाह के शुरुआती दिनों में ही एक घटना ने इस रिश्ते को हमेशा के लिए बदल दिया. मालदेव ने सुहागरात की रात अपनी पत्नी की सहेली भारमली से संबंध बना लिए. यह बात रानी उमादे को पता चली और उन्होंने जीवनभर के लिए मालदेव को पति के रूप में स्वीकार करने से इंकार कर दिया. उमादे ने खुद को रानी की उपाधि तक सीमित रखा, लेकिन वैवाहिक जीवन का हिस्सा कभी नहीं बनीं. इसी कारण उन्हें रूठी रानी कहा जाने लगा.

शेरशाह सूरी और मारवाड़ की भिड़ंत
1540 में जब शेरशाह सूरी ने हुमायूं को हराया तो हुमायूं ने राव मालदेव से शरण मांगी. मालदेव ने कूटनीति से उसे कुछ समय अपने राज्य में रहने दिया, लेकिन व्यक्तिगत मुलाकात नहीं की. इसके बाद शेरशाह ने मारवाड़ की ओर बढ़ना शुरू किया. अजमेर तक आते-आते उसके 80,000 सैनिकों की सेना राव मालदेव की लगभग 12,000 राठौड़ सेना से भिड़ी. सुमेलगिरी की लड़ाई में राठौड़ों ने जबरदस्त वीरता दिखाई. शेरशाह ने यह लड़ाई तो जीती, लेकिन वह भी यह कहने को मजबूर हो गया कि अगर मेरे पास मुट्ठी भर बाजरा होता तो मैं हिंदुस्तान की बादशाहत खो देता. यह कथन मालदेव की रणनीति और राठौड़ वीरता की गवाही देता है.

रूठी रानी और उनका त्याग
रानी उमादे जीवनभर अपने आत्मसम्मान पर अडिग रहीं. एक बार जब उन्हें वापस जोधपुर लाने का प्रयास हुआ तो दरबारियों ने उनके सामने एक दोहा कहा  

“माड़ रखे तो पीव तज, पीव रखे तज माड़,
दोए गयंद न बंधही, हे को खंभू ठाण.”

मतलब, जैसे दो हाथी एक खूटे से नहीं बंध सकते, वैसे ही सम्मान और पति दोनों साथ नहीं रह सकते. रानी ने यह सुना और फिर कभी जोधपुर की दहलीज नहीं लांघी. 1562 में जब राव मालदेव का निधन हुआ तो उनकी पगड़ी के साथ संदेश रानी तक पहुंचा. उस समय रानी उमादे ने उसी पगड़ी के साथ सती होकर अपने जीवन का अंत किया.

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